Saturday, September 12, 2009

घाव

सिसकती जिन्दगी के घाव , जो यूँ रिस - रिस के बहते हैं,
दर्द होता है, तड़पते हैं , मलहम को तरसते हैं।

तेरा आमिल(जादू)

निगाहें उठाता हूँ तो तू नजर आती है ,
निगाहें झुकाता हूँ तो तू नजर आती है।
तेरी मोहब्बत का ये आमिल गजब है ,
जहाँ देखूं इक तू ही तू नजर आती है ।
सोचता हूँ कभी किये आँख बंद कर लूँ ,
जो पलकें गिराता हूँ तो तू नजर आती है।
भूल जाऊं तुझे , जाम में डूब जाऊं ,
पैमानों में तेरी सूरत नजर आती है।
तुझे प्यार दूँ या करूँ तुझसे नफरत ,
सुर्ख लाल जोड़े में , जब तू नजर आती है।
तेरी इस हिमाकत को बेवफाई का दर्जा दूँ ,
हमे , तेरी बेवफाई में भी वफ़ा नजर आती है॥

शायरी

इस तस्सवुर से कि , कहीं इक और हसीं ,कम न हो जाए
इस जहाँ से , हम उनको अपने दिल में पनाह देते हैं।

यादों की जुगाली

रैन हमने सारी करवटें बदल कर काटी ,
चलती रही मन में तेरी यादों की जुगाली ।
हसरतों का पसीना , बह कर बदन से निकला ,
बेकस जज्बों का दरिया , आंसुओं में ना निकला॥
तनहाइयों की कातिल आहट तेरे कदम की ,
करती है कोई जुम्बिश , रह - रह कर मेरे दिल में।
दूर है तू फ़िर भी लगता है ऐसा दिल को ,
महकती हों तेरी सांसे मेरी चाहतों के चमन में।

जनाजा

कहते थे कि ना होंगे शामिल , जनाजे में किसी शराबी के ।
होटों से जाम लगा तो , कहा , अपने जनाजे में कौन जाता है॥

इक निगाह प्यार की

तरस गए है हम इक प्यार की निगाह को,
चल दिए कहाँ पे वो छोड़ अपने प्यार को ।
आपकी ये ज्यादती , इश्क को भारी पड़ी ,
बेकरार हो गए हम , इक प्यार की निगाह को।
तनहा ही रह जायेंगे आप , जिन्दगी की राह में।
की है जो वफ़ा तो हम , ज़फा भी कर दिखाएँगे
रूठकर सदा को हम , इस जहाँ से जायेंगे।
जुल्फों के पीछे से , निगाहों की हलचल,
हम ही नासमझ थे , जो इशारा ना समझे ।
फलसफा ये है किइश्क बेजुबान होता है ,
मगर इसकी कसक में हमने पत्थरों को बोलते देखा है।

२ शायरी

बेकरारियां बदल गई बेरुखी में आज ,
हमसफ़र मेरे , इसकी वजह तो बताते।
परवाने हम थे शमा उसका नाम था,
जलाना उसका काम था , जलना हमारा काम था।

२ शायरी

निगाहों की ठोकर लगी आकर दिल पे ,
जली है चिताएं मेरी जुस्तुजू की ।
क्या गुजरी थी दिल पे ये आलम न पूछो ,
सुलगते थे अरमां सिसकती थी आँखे।

शगल हुआ करती थी , शरारत जिन निगाहों की ,
आज इनमे बसी इक शिकायत सी क्यों है ।
फरेब किसने ,किससे किया , क्या पता ,
चोट दिल को लगी , और घायल हुए ज़ज्बात।

आशिकी

तरीका ऐ इश्क वो न सिखा पाए
जो हमने सिखाया तो अंखियों ने अश्क बहाए ।
हमारी आशिकी में ज़ोर कितना है ये जाना अब ,
की इश्क सिखाना था तुमको न सिखा पाए हम।
आशिकी को थी उम्मीद , उल्फत की उनसे ,
जिन्हें ख़ुद हमारी मोहब्बत का सहारा था।