निगाहों की ठोकर लगी आकर दिल पे ,
जली है चिताएं मेरी जुस्तुजू की ।
क्या गुजरी थी दिल पे ये आलम न पूछो ,
सुलगते थे अरमां सिसकती थी आँखे।
शगल हुआ करती थी , शरारत जिन निगाहों की ,
आज इनमे बसी इक शिकायत सी क्यों है ।
फरेब किसने ,किससे किया , क्या पता ,
चोट दिल को लगी , और घायल हुए ज़ज्बात।
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