Thursday, July 14, 2011

हमने देखी है........






साहिलों को तोड़ के , शहरों को मिटा दे जो ,
सुख गई नदियों की , ऐसी रवानी देखी है !

हदों को तोड़ के , मौत को जीत लाएं जो ,
कमसिनों में वो जोश-ओ-जवानी देखी है !!"

चीर के दरख्तों को , जो दो फाड़ कर दे ,
इस धरा पे भीम सी , वो हौसलाई देखी है!

तुम कमज़ोर नहीं हो इस जहाँ में ऐ दोस्त ,
तुममे दहकते अंगारों कि इक कहानी देखी है!

हिला दे ये दुनिया , कदम की एक ठोकर से,
जवानों , तुम में वो ताक़त अनजानी देखी है !

कौन कहता है 'क्रांति' हो नही सकती ऐ 'तल्ख़',
फिर से शोख़ हाथों में , वो 'तलवार पुरानी' देखी है






प्रवीश दीक्षित 'तल्ख़'

मुंबई





लगी हो आग कैसी भी,
समंदर से नहीं ज्यादा ,
उसे बुझना ही होगा ,
यहाँ दहक कम है नमी ज्यादा !

जो बादल से गिरता है,
धरा पर प्राण बन कर के ,
इन आँखों से बहे जितने
उन अश्कों से नहीं ज्यादा !!
धमाके कुछ कर ना पाएंगे ,
यहाँ दिलों में है लौह ज्यादा !

कितने अपनों को खोया है ,
ये गिनती है नहीं अब तक
हमें तुमसे यह शिकवा है ,
औरों से कहीं ज्यादा !!

लगे वो दाग छाती पे ,
कभी जो मिट ना पाएंगे
उन्हें बेदाग़ करने का ,
तुम कर पाए यदि वादा !!



प्रवीश दीक्षित 'तल्ख़'