लगी हो आग कैसी भी,
समंदर से नहीं ज्यादा ,
उसे बुझना ही होगा ,
यहाँ दहक कम है नमी ज्यादा !
जो बादल से गिरता है,
धरा पर प्राण बन कर के ,
इन आँखों से बहे जितने
उन अश्कों से नहीं ज्यादा !!
धमाके कुछ कर ना पाएंगे ,
यहाँ दिलों में है लौह ज्यादा !
कितने अपनों को खोया है ,
ये गिनती है नहीं अब तक
हमें तुमसे यह शिकवा है ,
औरों से कहीं ज्यादा !!
लगे वो दाग छाती पे ,
कभी जो मिट ना पाएंगे
उन्हें बेदाग़ करने का ,
तुम कर पाए यदि वादा !!
समंदर से नहीं ज्यादा ,
उसे बुझना ही होगा ,
यहाँ दहक कम है नमी ज्यादा !
जो बादल से गिरता है,
धरा पर प्राण बन कर के ,
इन आँखों से बहे जितने
उन अश्कों से नहीं ज्यादा !!
धमाके कुछ कर ना पाएंगे ,
यहाँ दिलों में है लौह ज्यादा !
कितने अपनों को खोया है ,
ये गिनती है नहीं अब तक
हमें तुमसे यह शिकवा है ,
औरों से कहीं ज्यादा !!
लगे वो दाग छाती पे ,
कभी जो मिट ना पाएंगे
उन्हें बेदाग़ करने का ,
तुम कर पाए यदि वादा !!
प्रवीश दीक्षित 'तल्ख़'
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