मेरी ख़ामोशी को वो आज फिर हिला गया ,
इक ख्याल मेरे जेहन से फिर टकरा गया !
तनहाइयाँ लिपटी हुई थी किसी बेल की तरह ,
इक तूफ़ान इस दरख़्त से फिर टकरा गया !!
बादलों की शरारत थी चाँद को ज़मीं ना मिली,
शोख झोंका हवा का इक चिलमन को हटा गया !!
उनकी ये चाहत थी कि हम उन्हें पनाह दें ,
इक खंजर ये गुजारिश इस दिल से कर गया !!
प्रवीश दिक्षित 'तल्ख़'