ख्याल ने खामोशियों को
ओढ़ लिया है इस तरह ,
हम हैं की फ़क़त
झींगुरों के इजहार सुने
जा रहे हैं
कोई चुप है तो कोई सुन
रहा है ,
कोई थम गया तो कोई चल
रहा है!
आज हर शख्स अपाहिज है
इंसान , रास्ते और मंजिलें
,
वक़्त चल रहा है , तब
वहां था, अब वहां है
नादान है वो सब जो जीत
पे इतराते हैं
देख वक़्त फिर वहीँ खड़ा
हंस रहा है
तूफ़ान तो आकर गुजर ही
जाते हैं अक्सर ,
बर्बादी की दास्ताँ कहने
को साहिल खड़ा है
प्रवीश दीक्षित'तल्ख़'