Saturday, March 31, 2012

सफ़र ये ज़ारी है


बदकिस्मती और खुशकिस्मती, के दरमियाँ ये जिंदगानी है,
बदगुमानियां हों या खुशफहमियां , सफ़र ये ज़ारी है!!



हादसों की बारिश ने इस कदर भिगोया है हमें ,
कि सूखी ज़मीन पे फिसलना अब तलक ज़ारी है!!


इस मैदान सी बन गई जिंदगी में
ग़म-ओ-ख़ुशी की रस्साकशी ज़ारी है!!


ये ना कोई "मेरी कहानी है ना "मेरी जुबानी" है,
आंसुओं की सच्चाई , आँखों से बहना ज़ारी है!!


समंदर में अकेली किश्ती का ना कोई माझी है,
की मेरा मांजी ही मेरे कल की निशानी है !!


हमें जाड़ों के मौसम ने ही जलाया है अक्सर,
की बर्फ का अंगार में बदलना अब भी ज़ारी है!!


यार-ओ-रफ़ीक इक इक कर जुदा हुए 'ऐ तल्ख़' ,
इस जिंदगी में ये सिलसिले अब तलक ज़ारी है!!