आज तमाशबीनों की भीड़ में खो गया वो ,
चेहरा जो मेरा था , ना जाने किसका हो गया
चेहरा जो मेरा था , ना जाने किसका हो गया
हमने कई बार पुकारा अपने नशेमन से उसे ,
अब तक मेरा था , अचानक पराया हो गया!!
दिल के गुनाह की सजा , इस रात को मिली ,
पलक झपकी ही थी की फिर सवेरा हो गया !!
सायबान रोशन थे जिसके नूर से अब तलक ,
वो चाँद किसी और आसमां में दाखिल हो गया !!
सैलाब भरा है आँखों में,मगर संभाले भी कैसे ,
ये दिल इस कदर टूटा और धज्जियाँ हो गया!!
वफ़ापरस्ती के बदले जो इनाम बख्शा है हमें ,
वो पल में ही मोहब्बत को बदनाम कर गया !!
ये बस खयालातों की 'धींगामस्ती' रही ,ऐ 'तल्ख़' ,
वो जिस्म तो छोड़ गया, मगर रूह साथ ले गया !!
प्रवीश दीक्षित 'तल्ख़'