Wednesday, September 23, 2009

बीमार इश्क के

कभी तुम 'हाय ' करती हो , कभी तुम 'बाय' करती हो ।
खामोश धड़कते दिल पे , क्यों तुम 'वार' करती हो।
दिखाकर ये अदाएं क्यों , हमे 'बीमार ' करती हो ॥

चुराते हैं नजर तुमसे , दहल जातें हैं फ़िर से जब ,
झुका कर तुम निगाह अपनी , फ़िर आंखें चार करती हो।

कहीं रुसवा न हो जाए दबे अरमां मोहब्बत के ,
जब हम दूर जाते हैं तुम नजदीक आती हो।

भुला बैठें हैं हम तुमको , यकीनन अपनी यादों से,
मगर तुम ख्वाब में आकर हमें बेजार करती हो ।

कहीं जज्बात में आकर तुम्हे अपना ही न बैठें ,
कि ख़ुद को रोक लें हम, ये कोशिश भी तुम बेकार करती हो।


घर की गौरमेंट

सखा हमारे अनोखे राम
एक दिन घर से निकले रूखे रूखे ,
पूछा हमने '' कहो मित्र क्या हाल है '' वे तत्क्षण बोले
'' वही हड्डी वही खाल है ''।
'कुछ नया नही है बतलाने को कि घर कि संसद बेहाल है और
अस्थिरता का भुंचाल है ।
हमने कहा 'क्यूँ क्या हुआ सब खैरियत तो है '।
वे थोड़ा सकुचाये फ़िर बोले ' अजी ख़ाक खैरियत है'
बीबी पश्चिम तो अम्मा पूरब है ।
घर कि संसद त्रिशंकु है 'बीबी ,अम्मा और मैं जनादेश को तरसे हैं '
मैं तटस्थ हो कर फंस गया हूँ , दो पाटों में अटक गया हूँ,
अम्मा कहती '' दल बदलू '' है ,
उत्कर्ष हुआ है मुझसे तेरा , फ़िर भी नही समर्थन तेरा।
बीबी कहती ''नारी बिन है नर अधुरा '' बहुमत होगा पूरा मेरा ।
अम्मा मुझ पर हक़ जता कर ,
फौरन अपनी सत्ता चाहती ।
तो श्रीमतीजी नाक फुलाकर ,
अलग राज कि मांग है करती ।
अम्मा देती लालच मुझको और श्रीमती जी 'धमकी'।

उलझ गया हूँ किस उलझन में ,
हल नही आता ध्यान ।
और सखा ने ये किस्सा कह कर छोड़ा एक निश्वास ,
बोले तुम्ही मित्र हो तुम्ही सुझाओं इसका कुछ समाधान।
हम बोले '' हे सखा '' तुम्हारी ये सिचुएशन हे बड़ी विकत गंभीर ,
हमने ' देश' कि ऐसी हालत देखी , कभी न देखि घर कि ।
आज हमारे देश कि संसद जनादेश को तरसी है ।
मित्र तुम्हारी ग्रह स्तिथि कुछ कुछ बिल्कुल वैसी है।
'' भाई अनोखे एक काम करो तुम
जो तुमको बतलाएं हम ।
दोनों में से किसी एक को अपना 'बाह्य समर्थन ' दे दो ,
फ़िर पहिले से हाथ खींच कर दूजे को एक मौका देदो ।
या फ़िर दोनों में तुम एक समझोता कायम कर दो ,
कि छ : महीने हो एक कि सत्ता , और छ: महीने दूजे की ।
इससे सत्ता कि अभिलाषा फ़िर दोनों की पूरी होगी ,
इससे ''घर की गौरमेंट'' में स्थिरता भी लागू होगी ।
सम्पूर्ण देश में यही हो रहा घर की ऐसी तैसी ...
समझ गए ये सलाह हमारी मित्र अनोखे राम ,
घर जाते ही कर डाला ये समझोते का काम ,
समझोते का काम ' पहलवान ' काम तो आया
अब घर में खुशहाली का क्या समां है छाया ॥

तेरा गांव

हमारी आँखों में फ़िर से देखो ,
तुम्हारी सूरत छिपी हुईहै।
हमारे दिल के सफे को पलटो ,
नाम तुम्हारा लिखा हुआ है।
हमारी सांसो की हर रवानी में,
महक तेरे केसुओं की आ रही है।
हमारे होटों से जो लफ्ज निकला ,
खुदा कसम, तेरी वफ़ा में निकला ।
जो हाथों से की हमने लिखने की कोशिश ,
तो हर एक हर्फा तेरा नाम निकला ।
पांवों ने जब भी करी कोई जुम्बिश ,
तो नतीजा हमेशा तेरा गांव निकला ।