Wednesday, September 23, 2009

बीमार इश्क के

कभी तुम 'हाय ' करती हो , कभी तुम 'बाय' करती हो ।
खामोश धड़कते दिल पे , क्यों तुम 'वार' करती हो।
दिखाकर ये अदाएं क्यों , हमे 'बीमार ' करती हो ॥

चुराते हैं नजर तुमसे , दहल जातें हैं फ़िर से जब ,
झुका कर तुम निगाह अपनी , फ़िर आंखें चार करती हो।

कहीं रुसवा न हो जाए दबे अरमां मोहब्बत के ,
जब हम दूर जाते हैं तुम नजदीक आती हो।

भुला बैठें हैं हम तुमको , यकीनन अपनी यादों से,
मगर तुम ख्वाब में आकर हमें बेजार करती हो ।

कहीं जज्बात में आकर तुम्हे अपना ही न बैठें ,
कि ख़ुद को रोक लें हम, ये कोशिश भी तुम बेकार करती हो।


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