मन की ख़ामोशी ,
तन की ख़ामोशी.
ख़ामोशी इच्छाओं की ,
अरमानो की ख़ामोशी ,
सच को जान कर उसे न कह पाने की ख़ामोशी ,
बिन वर्षा प्यासी धरती की ख़ामोशी ,
बिन जल धारा तडपती नदी की ख़ामोशी ,
लहरों की हलचल में समुन्दर की ख़ामोशी ,
अत्याचारी निजाम में घुट घुट जीती आवाम की ख़ामोशी कब टूटेगी चारों और पसरी अविश्वास की ख़ामोशी ,
कब तोड़ेंगे हम ये ख़ामोशी ..........?
तलवार ने टोका इक बार कलम को , बता री , रंग कौन भला ? जो सफे चढ़ा , जो धार चढ़ा , ''कलम का जवाब था '' जो धार चढ़ा , वो लहू बना , और भय का पर्याय बना, जो सफे चढ़ा , वो ज्ञान बना , इतिहास बना, विश्वास बना , इस जग का बदलाव बना... !!