मैं नाज़िश करूँ इसपे की तू मेरा हबीब है ,
ये मेरा नसीब है कि तू मेरे करीब है !!
सुने हैं तेरे बारे , सब किस्से अजीब हैं ,
बयां जिसने भी किये वो तेरे, मेरे रकीब हैं!!
कुदरत के ये नज़ारे हर दिल को अज़ीज़ हैं,
इक दिल ही तो है मेरा, जहाँ तू नज़ीब है !!
मैं तुझे रुसवा करूँ ये ज़माने कि दलील है ,
औकात में रहे ज़माना ,हम इतने, अदीब हैं!!
मिल्कियत नहीं तेरे सिवा हम कितने गरीब हैं,
तेरे बगैर ये जिंदगी ' ऐ तल्ख़' सजा-ऐ-सलीब हैं!!
हो रही है पैमाइश-ऐ-जिंदगी , अब आक़िबत है ,
रकबा दर रकबा सरकती, सांसो की ज़रीब है !!
शब्दार्थ -
नाज़िश - घमंड , गर्व
नज़ीब - उत्तम
प्रवीश दीक्षित 'तल्ख़'