Saturday, October 23, 2010

दिवाली आने को है -



अँधेरा डराता रहा है हर शख्स घबराया हुआ सा है
मसरूफ रहे हैं अब तक ,
अपने ही मायनों में
अब रुक जाएँ ये सिलसिले शायद ,
दिवाली आने को है.....

मुफलिस की कोठरी में ,
सिकुड़ता सा बचपन माँ के दामन से लिपटा,
देखता है पिता को
फिर बांध रही है उम्मीद ,
दिवाली आने को है .....

उदास थे अब तलक , घर और दर-ओ-दीवार
भर गया नया रंग-ओ-नूर सबके हिजाब में
सज उठे हैं दुल्हन की तरह,
दिवाली आने को है .......

परवाने ने पर तोले हैं फिर से शमां की चाह में
हर बार जलता रहा है वो जिसकी आरजू में
वो ज़ुस्तुज़ुं पूरी हो शायद ,
दिवाली आने को है ......

दीपों की जगमग है रोशनी का अहसास है
दूर हटेंगे ग़म सारे अब सुखों का अज़ान है
खुशियों का उन्माद जगाती ,
दिवाली आने को है.........

प्रवीशदीक्षित 'तल्ख़'