Friday, May 25, 2012

हैं अभी और बाकी ......

राह-ऐ-उल्फत में , इंतज़ार हैं अभी और बाकी ,
ये शोर ना थमेगा , जब तलक तलबगार हैं बाकी !


अलसाई सुबह में रात का खुमार है अभी और बाकी ,
चिलमनें तो हट गई , मगर दीदार अभी और बाकी !


मयकदे खाली हुए ,मगर प्यास है अभी और बाकी ,
तमाम जिस्म बुझ गया , दिल में तपिश अभी और बाकी !


दहशतगर्दी से निजात हो , ये आगाज़ है अभी और बाकी ,
जंग से क्या हांसिल उन्हें , यही अंजाम अभी और बाकी !


सियासत की बाजीगरी के कितने करतब हैं अभी और बाकी ,
की इन्सां की नुमाइश है फ़क़त सौदागिरी अभी और बाकी !

हदों पे कितना लहू बहा , ये सब हिसाब हैं अभी और बाकी ,
कितने सीने चाक , कितने दामन भीगे देखना अभी और बाकी !

दास्तान यूँ ना होगी तमाम, कलम में स्याही है अभी और बाकी,
मुल्क की आवाज़ बने ' ऐ तल्ख़'अरमान हैं बस ये और बाकी !!

प्रवीश दीक्षित 'तल्ख़'