1
चढ़ा बलि नैतिकता की
भूल गए सब कर्त्तव्यों को !
स्वार्थ का पीछा करने की
होड़ मची है इंसानों में !!
2
धर्म का चोला पहन के,
बात करें ये कैसी !
स्वामी अग्निवेश ने कर दी ,
सारे धर्म की ऐसी -तैसी !!
3
सारा देश लुटाय के ,
सरकार हो रही मस्त!
जनता भूखी मर रही ,
महंगाई कर रही त्रस्त !!
4
चोर लुटेरे, मंत्री ,
डाकू, संत फकीर
पूंजी पुरे देश की ,
खायी बना के खीर
प्रवीश दिक्षित 'तल्ख़'
मन की ख़ामोशी , तन की ख़ामोशी. ख़ामोशी इच्छाओं की , अरमानो की ख़ामोशी , सच को जान कर उसे न कह पाने की ख़ामोशी , बिन वर्षा प्यासी धरती की ख़ामोशी , बिन जल धारा तडपती नदी की ख़ामोशी , लहरों की हलचल में समुन्दर की ख़ामोशी , अत्याचारी निजाम में घुट घुट जीती आवाम की ख़ामोशी कब टूटेगी चारों और पसरी अविश्वास की ख़ामोशी , कब तोड़ेंगे हम ये ख़ामोशी ..........?
Monday, June 27, 2011
यादें
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