सारा जहाँ सो गया जब ,
मैं जागता रहा , क्यों
इस भीड़ में मैं खो गया, क्यों ?
कहने को तो है , इक दूसरे से ,
प्यार सबको।
जब वक़्त आया तो सबने किनारा किया ,
किस के घर में क्या छिपा है ,
अब बस यही आस है ,
पेट सबके भर गए जब ,
बाकी केवल 'चाह' है।
प्रवीश दीक्षित'तल्ख़'
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