कल तक जो चलाता रहा दिलों पे नश्तर
आज उसका दिल भी लहुलुहान है !
की मैयत पर मेरी, तेरा अश्क जो टपका
ये मेरी मौत पर तेरा अहसान है !!
जज्बात ने अख्तियार कर ली शक्ल "हर्फ़ " की ]
काफिया , ग़ज़ल होने का अब अहसास मांगता है ,
हसरतें दिल की बदल गई , जुनून में अब ,
तू मिलेगा कभी तो ,यही इंतज़ार मांगता है !! ''
देखा नहीं ख्वाब तलक जिसका कभी
'वही' चेहरा -ओ-तस्वीर बनाता है दिल ,
मिल जाएँ कभी 'वो' मुराद बनकर ,
आरजू में उनकी , कसमसाता है दिल!!
'' तेरे ये शेर पढ़ कर दिल-ए-दर्द मिट जाता है,
की तेरी शायरी में कोई 'रूहानी' दखल रहता है !!
प्रवीश दिक्षित' तल्ख़'
मन की ख़ामोशी , तन की ख़ामोशी. ख़ामोशी इच्छाओं की , अरमानो की ख़ामोशी , सच को जान कर उसे न कह पाने की ख़ामोशी , बिन वर्षा प्यासी धरती की ख़ामोशी , बिन जल धारा तडपती नदी की ख़ामोशी , लहरों की हलचल में समुन्दर की ख़ामोशी , अत्याचारी निजाम में घुट घुट जीती आवाम की ख़ामोशी कब टूटेगी चारों और पसरी अविश्वास की ख़ामोशी , कब तोड़ेंगे हम ये ख़ामोशी ..........?
Wednesday, June 8, 2011
शायरी
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