पर्दानशीनों की महफ़िल में , सभी जुदा-नकाब हैं,
हम अनजान होकर भी , बड़ी पहचान रखते हैं।
तुम हमसे दूर रहते हो हम तुमसे दूर रहते हैं ,
तुम्हे हर बार छूने का , हम अहसास रखते हैं।
बड़े मशहूर हैं किस्से तेरी एय्यारी के ज़ालिम ,
हकीक़त मेरी भी लेकिन , फ़साने साथ रखती है।
हमें तुम ढूँढना चाहो ,ये मुमकिन नहीं शायद ,
हवा में घुल जाने का , हुनर हम साथ रखते हैं।
हमें महसूस करके तुम, हमारी चाह समझ लेना,
मिटा कर इस बदन को , अब रूह तेरे नाम करते हैं।
प्रवीश दिक्षित
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