Saturday, May 25, 2013

वो नहीं जानते .........


दिल की चीरफाड़ से ,क्या हांसिल उन्हें
वो मेरे भोले सनम यह भी नहीं जानते !


ज़र्रा दर ज़र्रा, रग दर रग, टटोले जाते हैं
आरजू ओ तलाश क्या, ये भी नहीं जानते !

ज़ज्बे दिल में बने, आंखों से बयां होते हैं

पढ़ भी लेते, मगर रूबरू होना नहीं जानते !

सफों पे हर्फों से गुफ्तगू का है शौक उन्हें
ये कातिब राज ऐ दिल पढना नहीं जानते !


नज़र ये मिल भी जाए तो झुका लेते हैं" तल्ख़"
की मेरे कातिल , क़त्ल करना भी नहीं जानते !!


ढाई हर्फ़ के खेल को जो समझा, जहाँ पाया
उल्फत क्या होती हैं मेरे महबूब नहीं जानते !! 


प्रवीश  दीक्षित " तल्ख़"

 

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