अब अंगड़ाई ले रहे हैं जज्बात,
कि कहीं कुछ मचल तो रहा है !
हो रही है सीने में एक हलचल सी,
की कहीं कुछ बदल तो रहा है !
एक मुस्कराहट सी थी उन हसीं होटों पे
की बेरुखी का मोम , पिघल तो रहा है !
बिछा दे दिल अपना, उनके क़दमों तले,
ऐसा इक सपना , दिल में पल तो रहा है
लफ़्ज़ों और ज़ज्बों की जुगलबंदी में 'ऐ तल्ख़'
की प्यार का नगमा फिर से बन तो रहा है !
ये दो दिलों की अटपटी सी खामोश आवाजें,
की ये शोर भी सुहाना, अब लग तो रहा है!!
प्रवीश दीक्षित 'तल्ख़'
No comments:
Post a Comment