Sunday, May 20, 2012

कहीं कुछ बदल तो रहा है


अब अंगड़ाई ले रहे हैं जज्बात,

कि कहीं कुछ मचल तो रहा है !


हो रही है सीने में एक हलचल सी,
की कहीं कुछ बदल तो रहा है !


एक मुस्कराहट सी थी उन हसीं होटों पे
की बेरुखी का मोम , पिघल तो रहा है !


बिछा दे दिल अपना, उनके क़दमों तले,
ऐसा इक सपना , दिल में पल तो रहा है


लफ़्ज़ों और ज़ज्बों की जुगलबंदी में 'ऐ तल्ख़'
की प्यार का नगमा फिर से बन तो रहा है !


ये दो दिलों की अटपटी सी खामोश आवाजें,
की ये शोर भी सुहाना, अब लग तो रहा है!!

प्रवीश दीक्षित 'तल्ख़'

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