Thursday, May 3, 2012

पति पत्नी नोकझोंक












मित्र अनोखे राम से एक दिन हमने , कर डाला एक सवाल
मित्र कुशल से हो की कल रात तुम्हारे घर हुआ कोई बवाल
हुआ कोई बवाल ' भाभी ' बहुत थी गरजी बरसी ,
सुन कर बात हमारी मित्र ने आँखें तानी..
और बोले " मित्र व्यर्थ की चिंता छोडो ,
और यूँ ही हवा में ना खयाली घोड़े छोडो,
कल रात हमने श्रीमती से कर डाले दो दो हाथ ,
कर डाले दो दो हाथ कि सुंदरी घुटनों आई..
कि अब तक जो खोई थी वो इज्जत पाई "!



बात मित्र कि सुनकर हमको नहीं आया विश्वास,
नहीं आया विश्वास ये भौजी सुधरी कैसे!!
हमने कुछ सोचा और कहा मित्र से कि
कर डालो अब किस्सा पूर्ण बयान !
किस्सा पूर्ण बयान कि हम भी
लेलें तुमसे थोडा ज्ञान,
देख हमारी जिज्ञासा, मित्र ने
पूरा किस्सा किया बयान,


" कल रात मांजते बर्तन,
हमसे दो कप क्या टूटे ,
मानों श्रीमती जी के भैरूं रूठे
उसने अपने प्रवचनों का लिया पिटारा खोल,
हमने भी अपने कानों के लिया पटों को मोड़.
तब श्रीमती के क्रोध ने लिया भयंकर रूप
लगा निशाना उसने हम पर बर्तन फेंके,
जो बर्तन हमको लग जाता वो करती अट्टहास,
जो लगे निशाना चूक तो हम भी हंसियाते,
तो मित्र इसी खिचमतानी में ,
श्रीमती के हाथ लग गया लट्ठ ,
देख लट्ठ हाथ में उनके
अपनी हालत पस्त !!
हालत अपनी पस्त पलंग के नीचे दुबके
श्रीमती जी बन रणचंडी हमें लगाये टेर,
और लिए हाथ में लट्ठ ढूंडती कोना कोना
हम भी नीचे सरक लिए ना आये उसके हाथ
ना आये उसके हाथ, हुआ क्रोध जो ठंडा ,
थक चुकने के बाद छोड़ा उसने वो डंडा ,
लेकर गहरी सांस सुंदरी हमें पुकारे
निकल भी आओ,छिपे कहाँ हो प्रियवर प्यारे
सुनकर मीठे बोल बचन हम ना बहके ,
डटे रहे हम पलंग के नीचे ख़ामोशी से
इतने में उनके चक्षु मेरे चक्षु से टकराए ,
मित्र हमारे प्राण हलक में आये !
वो मुस्काती मोड़ के 'घुटने
पलंग के पास ही बैठी और बोली
तुम जीते हम हारे,
निकल भी आओ प्रिय प्राण हमारे
उसने मेरा हाथ पकड़ कर हमें निकाला
और डिनर बनाने का दिया हवाला"


लेकर एक निश्वास मित्र ने
किस्सा किया तमाम,
किस्सा किया तमाम कि सुंदरी घुटनों बैठी
मित्र अनोखे राम कि खोई इज्जत लौटी!!

प्रवीश दीक्षित ' तल्ख़'

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