Monday, August 15, 2011

तुम जो मिले


मैं बिखर रहा था राद-ए-गुल की तरह ,
तुने सहेजा और ज़ुल्फ़ में सजा लिया !

किसी बिछोने की सलवट सी थी ये जिंदगी ,
तुने संभाला , सजाया और सेज में ढाल लिया !

मैं सेहरा में पड़ा था , बेजान  रेत की तरह ,
तू बूंद बन कर गिरी ये जीवन संवार दिया !

एक पत्थर था मैं , इसके सिवा कुछ नहीं ,
तेरा हाथ लगा, और मुझे मूरत बना लिया !

कैसे शुक्र अदा करें तेरे अहसान का 'ए तल्ख़',
की जो उम्मीद थी खुदा से, तुने अदा किया !!

प्रवीश दीक्षित'तल्ख़'

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