Wednesday, January 6, 2010

आशियाँ (राष्ट्रदूत साप्ताहिक में प्रकाशित)

तेरे चाहने से ना बदलेंगी , ये रवायतें ये रस्मे ,
कि तू सिर्फ ज़र्रा है जहाँ में, कोई जुर्रत तो नहीं।

अक्सर सच होते रहे बद्ख्वाब अंदेशे भी मेरे ,
कि मिली नहीं ज़मीं भी ,मेरे रक्स-ऐ- नसीब को।

दरकती रही मेरी सोच , हमेशा तेरे बारे ,
कि कोई छलावा तो नहीं , तेरा प्यार मेरे बारे।


किये कई बार सजदे , मैंने तेरे आगे ,
कि तुने फेर लिया रुख , हर बार मेरे आगे।

मैं तेरी ज़फा का सताया , यूं गुमनाम न रहूँगा,
कि मैं इक बदमिजाज लम्हा , जो तफसील-ऐ-बयां बनूँगा।


तमन्नायीं ना रहा कभी , तेरे दीदार का मैं,
कि तो भी तेरा अक्स ,मेरे ज़ेहन में कहीं बसता है।

दिलबदर कर भी दूं , मैं तुझको , लेकिन ,
कि 'आशियाँ मेरे ख्वाब में, इक तुने बना रखा है।



प्रवीश दिक्षित




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