Saturday, October 10, 2009

मेरी आशा

चंचलता का बोध करते ,
नैन तुम्हारे मतवाले ।
हिरनी जैसी आंखों वाली ,
क्या नाम तुम्हारा मृगनयनी है ।
केश तुम्हारे गहरे काले ,
हों घनघोर घटाएँ सावन की।
देह की रंगत ऐसी पाई,
सिन्दूर मिला हो माखन में।
हे ! गौर वर्ण नव यौवना ,
नाम तुम्हारा रम्भा है।
मुख पर तेज अप्सरा जैसा ,
और गालों पे लाली है।
दंत पंक्तियाँ धवल तुम्हारी ,
मानो मोती जड़े हुए हों
पहचान गया हूँ तुमको देवी,
क्या तुम परियों की रानी हो ?
बोल तुम्हारे इतने मीठे ,
मधुकोशों में मधु लगता है।
शब्द तुम्हारे मुख से निकले ,
ज्यों पुष्प कहीं पे झरता है ।
हे ! मधुर वाणी की स्वामिनी ,
तुम वामा भेष में कोकिल हो।
हे ! अनिघ्द सुंदरी व्यक्त करो अब ,
कुछ तो अपना परिचय दो ।

चंचलता का बोध कराते,
ये नैन हमारे मतवाले ,
न हिर्नाक्षी न मृग नयनी ,
मैं तो तेरी आशा हूँ
ना रम्भा हूँ ना परी हूँ मैं ,
मेरा परिचय इतना है ,
की खोज रहे हो जिसे स्वप्न में ,
मैं वो तुम्हरी अभिलाषा हूँ ।
मृदु वाणी की खुशबु से,
मैं ह्रदय तुम्हारा महकाऊँगी ।
ढाई आखर का ग्रन्थ सिखाकर ,
मन उपवन में बस जाउंगी ॥





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