Saturday, October 3, 2009

यादों का सफर

हर सुबह जब आँख खोलता हूँ ,
सामने पाताहूँ एक मासूम चेहरा ,
प्रेम रस बिखेरता आत्मीयता जताता सा।
प्यारी आँखे कभी बोलती सी , कभी डोलती सी
पलकें जो गिरती मतवाला करती ,
पलकें जो उठती दीवाना बनाती ।
होंठ चुप हैं मगर बोलते से ,
कपोलों की लाली शिकायत सी करती ,
लटें रेशमी सी और घनी लम्बी काली
बल खाए ऐसे , नागिन मतवाली ।
साँसे महकती हों फूलों की डाली ,
इसे देखता हूँ मैं और सोचता हूँ
ये है कोई अपना या महज एक सपना ,
छूता हूँ उसे तो एक हलचल सी होती ,
वहां चेहरा नही है बस इक 'सिफर ' है ,
ये आपकी खुबसूरत यादों का सफर है॥


(अर्थ :- सिफर - शून्य )

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