Friday, September 25, 2009

दो और दो पॉँच

इक शाम अनोखेराम , अपनी पत्नी से बोले ,
'प्रिये' पढ़ी लिखी हो , तुमसे हम इक 'क्वेशचन पूंछे
श्रीमतीजी कुछ सकुचाई , फ़िर झट से बोली ' हाँ'
सखा ने पूछा फ़िर बतलाओ
'' सिंदबाद ने की पृथ्वी के तीन परिक्रमण '',
एक में उसकी मौत हो गई कौनसा था वो भ्रमण ।
श्रीमतीजी तुनक के बोली '' अजी हटाओ ''
इस सदी हुई हिस्ट्री को ना दोहराओ ,''क्वेशचन हो तो
फ़िर कोई मैथ का लाओ ।
वे चोंके फ़िर अकड़ गए , पूछा ,
मैथ का ' क्वेशचन ' अच्छा प्रिये ' बताओ
होते हैं ' दो और दो कितने ',
श्रीमतीजी शीघ्र ही बोली ' दो और दो पॉँच' और कितने ?
चोंक पड़े फ़िर सखा हमारे उनकी मैथ नोलेज पर
दो और दो चार सुना था हो गए 'पॉँच ' ये कबसे
तत्क्षण श्रीमतीजी ने की ,
उनकी जिज्ञासा शांत
कल केबल पर पिक्चर देखी ,
उसमे '' दो और दो थे पॉँच ''॥

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