बिखर जाना खुशबु बनके , इस जहाँ में 'तुम 'समां जाना जल बनके इस धरा में तुम
सुकून मिले रूह को ऐसी दुआ बनना ,
ठंडी छांव बनके फ़ैल जाना इस बागबान में तुम।
काफियों में बंधकर ग़ज़ल बनना ,
कह सके कोई शायर वो नज़म बनना तुम
शमां बनके बज्म में रौशनी करना,
परवानो को बख्श के गले लगाना तुम।
मिटा के नफरत दिलों से क्षमा बनना ,
मोहब्बत की अलख जलाना तुम।
निराश दिलों की आशा बनना ,
मन में उल्लास जगाना तुम।
क्या हो,क्यूँ हो , कौन हो तुम,
उठते होंगे प्रश्न ,करके सारे कर्म
ख़ुद उत्तर बन जाना तुम।
सुकून मिले रूह को ऐसी दुआ बनना ,
ठंडी छांव बनके फ़ैल जाना इस बागबान में तुम।
काफियों में बंधकर ग़ज़ल बनना ,
कह सके कोई शायर वो नज़म बनना तुम
शमां बनके बज्म में रौशनी करना,
परवानो को बख्श के गले लगाना तुम।
मिटा के नफरत दिलों से क्षमा बनना ,
मोहब्बत की अलख जलाना तुम।
निराश दिलों की आशा बनना ,
मन में उल्लास जगाना तुम।
क्या हो,क्यूँ हो , कौन हो तुम,
उठते होंगे प्रश्न ,करके सारे कर्म
ख़ुद उत्तर बन जाना तुम।
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