गर नही हों पर
तो परवाज क्या उडेंगे ।
गर नही हों कांटे ,
तो फूल क्या खिलेंगे ।
ठोकरें ना हों जिन्दगी मैं अगर ,
तो इंसान क्या खाक बनेंगे .
तो परवाज क्या उडेंगे ।
गर नही हों कांटे ,
तो फूल क्या खिलेंगे ।
ठोकरें ना हों जिन्दगी मैं अगर ,
तो इंसान क्या खाक बनेंगे .
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