Tuesday, October 27, 2009

जरा देर सही

ना बुझा उम्मीद के चिराग ,जिंदगी रोशन होगी कभी ,
ज़रा देर सही .........
छंट जाएगा ये अँधेरा , होगी सहर कभी न कभी ,
ज़रा देर सही...........

गुजश्ता जिंदगी को याद कर , वक्त- ऐ- सुखन आएगा कभी ,

ज़रा देर सही.........
कतरा कतरा लम्हे , कसक पर्वत सी , ये वक्त-ऐ-दर्द है कटता नही अभी,
जहाँ में , कोई तो होगा तेरा , कि 'फ़रिश्ता ' सिर्फ़ बयां नही ,

ज़रा देर सही...........
छटपटाया हमेशा जिसकी चाहत में , वो आरजू पूरी होती नही , अभी

सूनी है गलियां चाहत की , वीरां हैं शहर अरमानों के ,
बस जाएँगे वहां भी आशियाने , होगी रहगुज़र भी ,

ज़रा देर सही.........

ये बैचेनी , ये बेचारगी हो जाएंगी गर्क , महकेंगी कलियाँ खुशिओं की कभी ,
ग़मों का कफ़न ढक ना सकेगा , सुखों की लाश को ,

कि होगी फ़िर से कोई जुम्बिश ,
ज़रा देर सही........!

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