Friday, September 11, 2009

: अबला :

दुःख से हारी ,
बीमारी की मारी ।
एक बेचारी, अबला नारी ,
प्रयोगशाला पहुँच , एक सज्जन से बोली
भेडिया जी भेडिया जी ,
मेरा खून ले लो ,
खून ले लो और जांच कर दो ।
बस किसी भी तरह , यह बीमारी दूर हो ,
ऐसा कोई उपाय कर दो , कृपा होगी आपकी ।
अबला के यह उवाच सुन, सज्जन का मन पिघला ,
और उन्होंने सिरिंज में अबला का खून लिया,
खून लिया और खून देख वे चकराए ,
खून का रंग काला था , वे समझ नही पाये
और आँखों में जिज्ञासा लिए हमारे पास आए ।
पूरा किस्सा सुनकर हमने छोड़ा एक निश्वास ,
और सज्जन से बोले मित्र खुशनसीब हो ,
वो अबला नही आज की दुनिया थी जो ,
जो नारी भेष में तुम्हारे पास पधारी थी
झूठ,छल, प्रपंच, अधर्म की मारी थी ,

अपने इलाज के लिए आपके पास पधारी थी ।
इन बिमारियों के 'वायरस' आज के इंसान हैं ,
इसलिए उसके खून का रंग काला था ,
आज के इन्सान खून के प्यासे हैं
अतः तुम्हे भेडिया कहकर पुकारा था।
इन बिमारियों का इलाज किसी भी हाकिम के पास नही है
इलाज की उम्मीद में ,
बिमारियों का बोझ लिए ,
बेचारी दरबदर भटक रही है।
जर्जर हो रही है ।
सारी बात समझ सज्जन की आंखों में आंसू भर आए ,
आंखों में उसके लिए दुआ करते वे वापस चल दिए ।

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