Monday, June 17, 2013

मेरे मेहरबां

 
मेरे मेहरबां की इन्तहा तो देखिये,
दर्द देकर भी नादान बने रहते हैं !  
 
बात करते हैं, उनसे मर्ज़-ऐ-दिल की ,
वो शफाखाने का पता दे देते हैं !!
 
कि वो एक अदद मुस्कराहट से,
जिस्म में हरारत बिखेर देते हैं !
 
कभी मानते हैं कभी रूठ जाते हैं,
मेरे यार मेरा नसीब बन जाते हैं !!
 
इन अदाओं पर नाजिश करें "तल्ख़",
वो पर्दानशीं होकर सब राज छुपाते हैं
 
प्रवीश दीक्षित "तल्ख़"

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